वक्फ संशोधन अधिनियम के बीच दरगाह तोड़े जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड को नोटिस जारी किया
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने देहरादून में वक्फ संपत्ति, दरगाह हजरत कमाल शाह, के कथित अवैध विध्वंस को लेकर उत्तराखंड सरकार और अधिकारियों से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता मेहफूज अहमद ने अवमानना याचिका दायर कर दावा किया कि यह विध्वंस केंद्र सरकार के उस आश्वासन का उल्लंघन है, जिसमें वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर कानूनी चुनौतियों के दौरान वक्फ संपत्तियों की स्थिति में बदलाव न करने की बात कही गई थी।
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव आनंद बर्धन, देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट सविन बंसल, सिटी मजिस्ट्रेट प्रत्युष सिंह और नगर आयुक्त नमामि बंसल को नोटिस जारी कर स्थिति स्पष्ट करने को कहा। याचिका में आरोप लगाया गया है कि 1982 में सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ्स, लखनऊ के साथ पंजीकृत इस दरगाह को 25-26 अप्रैल की रात बिना किसी नोटिस या सुनवाई के ध्वस्त कर दिया गया।
याचिकाकर्ता ने 17 अप्रैल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया, जिसमें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से आश्वासन दिया था कि अगली सुनवाई तक किसी वक्फ संपत्ति को डी-नोटिफाई नहीं किया जाएगा और न ही उसका स्वरूप बदला जाएगा। इसके बावजूद, देहरादून प्रशासन ने कथित तौर पर मुख्यमंत्री पोर्टल पर प्राप्त शिकायत के आधार पर यह कार्रवाई की। याचिका में कहा गया कि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर 2024 के फैसले का भी उल्लंघन है, जिसमें बिना पूर्व नोटिस और 15 दिन की प्रतिक्रिया अवधि के विध्वंस पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रव्यापी दिशानिर्देश जारी किए गए थे।
दरगाह हजरत कमाल शाह को 150 वर्षों से अधिक समय से धार्मिक महत्व का स्थल माना जाता है और यह वक्फ एसेट मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (WAMSI) में भी पंजीकृत है। याचिका में आरोप लगाया गया कि यह विध्वंस देहरादून में अधिकारियों द्वारा चलाए गए व्यापक अभियान का हिस्सा था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 से संबंधित अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ते हुए सुनवाई 15 मई को निर्धारित की है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि याचिकाकर्ता अपने दावों को साबित कर देते हैं, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप दंडात्मक उपाय हो सकते हैं। यह मामला देश भर में वक्फ संपत्तियों के लिए व्यापक प्रभाव डाल सकता है, खासकर जब वक्फ अधिनियम के संशोधन न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।