तुर्की क्यों कर रहा है पाकिस्तान का समर्थन? भारत से बेवफाई के पीछे यही है असली वजह

भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव और हालिया सैन्य संघर्षों में तुर्की खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है। तुर्की ने न केवल पाकिस्तान को हथियार मुहैया कराए हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान का समर्थन किया है। कई लोगों का मानना है कि मुस्लिम देश होने के कारण तुर्की पाकिस्तान के साथ है, लेकिन इसके पीछे असली कारण कुछ और ही बताया जा रहा है।

खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन क्यों कर रहा है तुर्की?

जब भारत ने पहलगाम आतंकवादी हमले का बदला लेने के लिए ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, तो तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन किया। एर्दोगन ने सोशल मीडिया पर लिखा कि तुर्की पाकिस्तान के लोगों के साथ है। उन्होंने पाकिस्तान के लोगों को अपना भाई बताया। लेकिन इतनी सद्भावना क्यों? सबसे पहले आपको बता दें कि भारत के साथ सैन्य संघर्ष में पाकिस्तान ने तुर्की से मिले ड्रोनों का इस्तेमाल किया था। पाकिस्तान तुर्की से और भी कई तरह के हथियार खरीदता है। सैन्य और कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि रेसेप तैयप एर्दोगन के पाकिस्तान के प्रति प्रेम के पीछे व्यापार और लाभ का खेल है।

हाल के वर्षों में तुर्की का रक्षा उत्पादन तेजी से बढ़ा है। पिछले कुछ वर्षों में तुर्की ने तेजी से प्रगति करते हुए दुनिया का 11वां सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश बन गया है। 2019 से 2023 के बीच तुर्की का हथियार निर्यात 106 प्रतिशत बढ़ा है। नाटो सदस्य होने के नाते तुर्की को कई प्रौद्योगिकियां मुफ्त में मिलती हैं। अब तुर्की को अपने हथियारों की बिक्री के लिए एक बाजार की जरूरत है और पाकिस्तान एक अच्छा ग्राहक हो सकता है। हाल के वर्षों में तुर्की ने पाकिस्तान के साथ कई बड़े रक्षा समझौते किए हैं। तुर्की पाकिस्तान को युद्धपोत, टी-129 अटैक हेलीकॉप्टर और ड्रोन भी देने वाला है।

इधर, तुर्की जानता है कि भारत भी रक्षा क्षेत्र में एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरा है। एर्दोगन यह भी जानते हैं कि भारत स्वयं ऐसे हथियार बनाने में सक्षम है जिनकी गुणवत्ता उनके हथियारों से कई गुना बेहतर हो सकती है। और भारत कभी भी तुर्की से हथियार नहीं खरीदेगा। ऐसी स्थिति में, पाकिस्तान को पूरी तरह से अपने पक्ष में रखना तुर्की के लिए एक लाभदायक सौदा है। उधर भारत और तुर्की के बीच व्यापार भी बहुत कम है। पाकिस्तान तुर्की का बाजार है। 2003 में प्रधानमंत्री और 2014 में राष्ट्रपति बनने के बाद, एर्दोगन 10 से अधिक बार पाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं। तुर्की हिंद महासागर में भी अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहता है, जिसके लिए उन्हें पाकिस्तान के समर्थन की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि 2014 में नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने और उसी साल एर्दोगन प्रधानमंत्री से तुर्की के राष्ट्रपति बने। एर्दोगन विश्व मंच पर प्रधानमंत्री मोदी की बढ़ती उपस्थिति और विश्वसनीयता के साथ तालमेल बिठाना चाहते हैं। एर्दोगन की एक और आकांक्षा मुस्लिम देशों का नेता बनना है। इन सभी कारणों से भी तुर्की ऐसा कर सकता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *