‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ रोग से पीड़ित है अबकी पीढ़ी! मुक्ति पाने के लिए चाहिए ‘ढाई मिनट’
ध्यान केंद्रित करने में बहुत अनिच्छा। चंचल मन एक जगह स्थिर ही नहीं रहना चाहता। सोचिए तो, आखिरी बार आपने कब एक कहानी एक बार में पूरी पढ़ी थी? यह संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकेगी। यहां तक कि मोबाइल पर एक रील चलाने पर भी वह ज़्यादा देर तक देखना अच्छा नहीं लगता। किताबें पढ़ना, मोबाइल देखना या अपने शौक का कोई काम भी लगातार ध्यान लगाकर करने का चलन लगभग खत्म हो गया है।
अबकी पीढ़ी एक ही समय में विभिन्न कामों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करती है। इससे एकाग्रता की कमी होती है, और काम भी पूरी तरह से नहीं हो पाता। एक ही समय में चारों ओर ध्यान लगाने से याददाश्त भी धुंधली पड़ने लगती है। जो काम अभी-अभी किया है, वह भी ज़्यादातर समय याद नहीं रहता। गाड़ी की चाबी से लेकर चश्मा, अपने हाथ से उठाकर रखने के बाद भी अगले ही पल याद नहीं आता। याद न आने पर एक असहजता भी महसूस होती है। यह सब ध्यान की कमी के कारण होता है। शोधकर्ता इस अस्थिर और चंचल स्वभाव को ‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ कह रहे हैं। और इस विषय पर सर्वेक्षण करते समय शोधकर्ताओं की आँखें फटी रह गईं।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ता लंबे समय से हाल की पीढ़ी के बच्चों के चंचल मन पर सर्वेक्षण कर रहे हैं। शोधकर्ता ग्लोरियस मार्क ने बताया है कि किसी एक काम पर कितनी देर तक लगातार ध्यान दिया जा रहा है, इसका एक निश्चित पैमाना है। मान लीजिए, आप किताब पढ़ रहे हैं, ठीक कितनी देर तक किसी और काम में मन लगाए बिना केवल किताब पढ़ेंगे, इसका भी हिसाब है। देखा गया है कि 2004 तक युवा किसी एक काम पर ढाई मिनट तक ध्यान दे पाते थे, 2010 के बाद यह घटकर 75 सेकंड हो गया, और अब और कम होकर 47 सेकंड हो गया है। यानी ‘अटेंशन स्पैन’ घटते-घटते 47 सेकंड पर आ गया है।
क्यों कम हो रही है एकाग्रता?
2011 में यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के शोधकर्ता डेविड लेवी ने इस विषय पर एक शोधपत्र प्रकाशित किया। उन्होंने ही पहली बार ‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ सिंड्रोम की बात कही। शोधकर्ता का कहना था कि अबकी पीढ़ी एक काम से दूसरे काम पर कूदने में कुछ सेकंड का समय ले रही है। नतीजतन, कोई भी काम ठीक से पूरा नहीं हो पा रहा है। चाहे वह पढ़ाई हो, किताब पढ़ना, टीवी देखना या अपना पसंदीदा कोई काम। पढ़ते समय अचानक लगता है कि टीवी देखना अच्छा होता। टीवी चलाने के अगले ही पल लगता है कि कहानी की किताब खत्म कर लेनी चाहिए। किताब के पन्नों पर कुछ सेकंड मन लगाने के बाद मोबाइल हाथ में लेकर यूट्यूब चलाने लगते हैं। यह जो अस्थिरता है, इसी का नाम ‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ है।
इसके कई कारण हैं। पहला, डिजिटल उपकरणों पर निर्भरता बढ़ गई है। मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप पर दिन-रात व्यस्त रहने से ध्यान में रुकावट आ रही है। विभिन्न उपकरणों से आने वाले नोटिफिकेशन अस्थिरता बढ़ा रहे हैं।
सोशल मीडिया का भी प्रभाव है। सोशल मीडिया पर विभिन्न लोगों की जीवनशैली देखकर मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। नतीजतन, सभी काम एक साथ करने की कोशिश में दिक्कत आ रही है। व्यक्तिगत संबंधों के बंधन भी ढीले पड़ रहे हैं।
वास्तविक दुनिया से संपर्क टूटना भी इसका एक कारण है। स्मार्टफोन की लत सामाजिक अलगाव की ओर ले जा रही है, इससे मानसिक तनाव और चिंता भी बढ़ रही है।
वापस जाएँ ढाई मिनट में
शोधकर्ता ध्यान और एकाग्रता बढ़ाने के लिए एक ही तरीके की बात कर रहे हैं। उस ढाई मिनट में वापस जाना शुरू करना होगा। जो भी काम करें उसमें कम से कम ढाई मिनट तक लगातार ध्यान देना ही होगा। भले ही दूसरे कामों का लालच आए, उसे टालना ही बेहतर है। धीरे-धीरे समय बढ़ाना होगा।
रोज सुबह 20 मिनट टहलने से भी मन अच्छा रहेगा, एकाग्रता बढ़ेगी। टहलते समय मोबाइल दूर रखना होगा। रोज रात को सोने से पहले रील न देखकर पूरे दिन का काम लिख कर रखना होगा। कौन सा काम कितनी देर तक किया है, उसका भी हिसाब रखें। इस तरह याददाश्त भी बेहतर होगी, मन की अस्थिरता भी कम होगी।