मदद के बाद लोग क्यों बदल जाते हैं? प्रेमानंद जी महाराज से जानिए गहरा जवाब!

क्या आपने कभी महसूस किया है कि किसी की मदद करने के बाद वह व्यक्ति समय के साथ आपके प्रति अपना व्यवहार बदल देता है? इस शाश्वत प्रश्न का एक अत्यंत सूक्ष्म और आध्यात्मिक उत्तर आचार्य प्रेमानंद जी महाराज ने दिया है। उनके अनुसार, हमारी अपेक्षाओं का तरीका ही इसकी जड़ में है। उन्होंने कहा है, “अगर आप किसी की मदद कर रहे हैं, तो उसका फल उस व्यक्ति से नहीं, बल्कि भगवान से अपेक्षित रखें।”
आचार्य जी समझाते हैं कि जब हम किसी को ₹500 देते हैं, भोजन कराते हैं, वस्त्र देते हैं या अन्य कोई सहयोग करते हैं, तो उसका पुण्यफल सीधे ईश्वर के खाते में दर्ज हो जाता है। यदि आप उस व्यक्ति से ‘धन्यवाद’ या कृतज्ञता की उम्मीद करते हैं, तो यह हमारी लौकिक सोच का ही प्रतिबिंब है। लेकिन सच्चा परोपकार वही होता है, जिसमें हमारी एकमात्र अपेक्षा ईश्वर से हो, किसी इंसान से नहीं। हमारी कमजोरी यही है कि जब हम किसी को सुख देते हैं, तो बदले में चाहते हैं कि वह हमसे प्रेम करे, सम्मान करे और हमेशा कृतज्ञ रहे। लेकिन ऐसा होता नहीं है। प्रेमानंद जी महाराज आगे कहते हैं कि यह संसार माया से प्रेरित है। जब आप किसी पर बार-बार उपकार करते हैं, तो कई बार वही व्यक्ति आपको ‘बुद्धिहीन’ समझने लगता है। यहां तक कि वह आपके सम्मान की बजाय आपको तुच्छ भी समझ सकता है। उनका उपदेश है कि यदि आपने किसी को पानी पिलाया और वह धन्यवाद देकर चला गया तो ठीक है। लेकिन यदि वह चुपचाप चला गया, तब भी वह पुण्य ईश्वर के खाते में जमा हो गया। क्योंकि प्रभु जब देंगे, तो बहुत अधिक देंगे।