इराक का भविष्य खतरे में! क्या अफगानिस्तान दोहराएगा इतिहास?

इराक का भविष्य खतरे में! क्या अफगानिस्तान दोहराएगा इतिहास?

2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने कुछ ही दिनों में पूरे देश पर कब्जा कर लिया था. अब ऐसा ही कुछ इराक में होने का डर सता रहा है, जहां से अमेरिकी सेना निकलने की तैयारी में है. इस बीच, एक खतरनाक विद्रोही संगठन ने अमेरिका को जल्द से जल्द देश छोड़ने की चेतावनी दी है.

इराक के कताइब हिजबुल्लाह के वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी अबू अली अल-अस्करी ने सोमवार शाम को एक सख्त बयान जारी किया. उन्होंने कहा कि उनका समूह इराकी क्षेत्र से अमेरिकी बलों की वापसी पर कड़ी नजर रख रहा है और चाहता है कि वे संयुक्त ऑपरेशन कमांड, ऐन अल-असद एयरबेस और कैंप विक्टोरिया सहित सभी सैन्य स्थलों से पूरी तरह हट जाएं. अल-अस्करी ने चेतावनी दी कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.

अल-अस्करी ने अपने बयान में कहा, “हम बारीकी से देख रहे हैं और अमेरिकी कब्जे वाली सेनाओं के पूरी तरह से चले जाने का इंतजार कर रहे हैं.” उन्होंने स्पष्ट किया कि समूह का धैर्य असीमित नहीं है. उन्होंने सभी गुटों और अधिकारियों से सामूहिक रूप से काम करने का आग्रह किया ताकि अमेरिकी टालमटोल की रणनीति को खत्म किया जा सके.

अल-अस्करी ने आगे चेतावनी दी कि यदि वाशिंगटन अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन नहीं करता है, तो कताइब हिजबुल्लाह बड़े हमले करने के लिए तैयार है, जिससे अमेरिकी सैनिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.

इराक में बड़े विरोध प्रदर्शनों और संसद में एक प्रस्ताव के बाद अमेरिका और इराकी सरकार के बीच सहमति बनी थी कि अमेरिकी सेना सितंबर 2025 से इराक से वापसी शुरू कर देगी. अमेरिकी सेना 2003 से इराक में मौजूद है और फिलहाल ISIS आतंकवाद से निपटने के लिए अपनी उपस्थिति को आवश्यक बताती है. हालांकि, इराक के कई संगठनों का मानना है कि इराकी सरकार को अमेरिकी सेना की वापसी करानी चाहिए और आतंकवाद से लड़ने के लिए देश की अपनी सेना को मजबूत करना चाहिए.

इराक के पास भी कोई मजबूत सेना नहीं है. वहीं इराक में कई मिलिशिया समूह सक्रिय हैं, जिनमें कताइब हिजबुल्लाह एक खतरनाक और बड़ा विद्रोही समूह है, जिसे ईरान का पूरा समर्थन प्राप्त है. ऐसे में कई विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद कई शिया गुट इराक पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि, इनमें से किसी भी संगठन ने ऐसी मंशा नहीं जताई है, लेकिन ये सभी इस्लामी शासन के समर्थक हैं.

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