लंबाई थी ७ मिनट, नदी किनारे हुई थी शूटिंग, कैसे बनी थी दुनिया की पहली पोर्न फिल्म?

प्रतिबंधों, निगरानी या विभिन्न तरीकों से देश-विदेश में पोर्नोग्राफी पर बार-बार लगाम कसी गई है। लेकिन इस तरह की फिल्मों का निर्माण बंद नहीं किया जा सका है। पोर्नोग्राफी की लोकप्रियता भी कम नहीं हुई है। सभ्य समाज की आड़ में यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए आज भी कई लोग नीली फिल्मों (porn films) के पर्दे पर आंखें गड़ाए रहते हैं। स्मार्टफोन, आईफोन के युग में नीली फिल्में आसानी से उपलब्ध हैं।

कहीं पैसे खर्च करके, कहीं मुफ्त में ये फिल्में देखी जा सकती हैं। बाजार में असंख्य पोर्नोग्राफी वेबसाइटें मौजूद हैं। उनकी लोकप्रियता भी आसमान छू रही है। लेकिन इस पोर्नोग्राफी की शुरुआत कहां हुई? कब से व्यक्ति के निजी दायरे में नीली फिल्मों ने जगह बनाई? कहां, कैसे हुई थी उनकी शूटिंग?

पहले सबाक (बोलती) फिल्म के कुछ साल बाद ही दुनिया में पोर्नोग्राफी की शुरुआत हुई। पहली पोर्नोग्राफी फिल्म की शूटिंग १८९६ में हुई थी। फिल्म को ‘अश्लील’ बनाने में सबसे पहले फ्रांस आगे आया था। फ्रांसीसी फिल्म निर्माता यूजिन पिरौ और अल्बर्ट किर्शनर ने फिल्म में यौनता को प्रवेश कराकर पहला वीडियो बनाया था। उस लघु फिल्म का नाम ‘ले कूचेर दे ला मारी’ रखा गया था।

दुनिया की पहली पोर्न या अश्लील फिल्म के तौर पर सात मिनट की ‘ले कूचेर दे ला मारी’ की पहचान मिलती है। इस फिल्म में एक युवती के नहाने के दृश्य को कैमरे में कैद किया गया था। शौचालय में जाकर वह युवती अपने शरीर से एक के बाद एक कपड़े उतार रही थी। महिला शरीर को कामोत्तेजक दृष्टिकोण से दिखाने के माध्यम से पैसा कमाने का यह तरीका अन्य फ्रांसीसी निर्माताओं को भी पसंद आया था। इसलिए धीरे-धीरे वे पर्दे पर साहसी दृश्य दिखाने लगे।

‘फातिमा’स कूची कूची डांस’, ‘द बर्थ ऑफ द पर्ल’ जैसी फिल्मों में इसके बाद कुछ साहसी स्त्री देह केंद्रित दृश्य दिखाए गए थे। १८९६ में ही ‘द मे इरविन किस’ फिल्म में ४७ सेकंड के एक क्लिप में पहला चुंबन दृश्य दिखाया गया था।

हालांकि, उस समय ये साहसी फिल्में conservative समाज के कोप का शिकार हुई थीं। रोमन कैथोलिक चर्च ने ‘द मे इरविन किस’ फिल्म से चुंबन दृश्य काट देने का फरमान सुनाया था। तत्कालीन समाज में सार्वजनिक रूप से स्त्री-पुरुष का चुंबन दंडनीय अपराध था।

बीसवीं सदी की शुरुआत में ऑस्ट्रिया में सिनेमा देखने की रीतियां थोड़ी भिन्न थीं। रात के समय पुरुष झुंड बनाकर सिनेमाघरों में जाते थे, जहां नीली फिल्में दिखाई जाती थीं। १९०६ से १९११ तक इन थिएटरों में कुल ५२ यौन उत्तेजक फिल्में दिखाई गई थीं। इन फिल्मों में स्थानीय युवतियों के नग्न शरीर दिखाए जाते थे। इनके निर्माण के पीछे जोहान श्वार्ज़र थे। १९११ में सेंसरशिप अधिकारियों ने जोहान की सभी फिल्मों को नष्ट करने का निर्देश दिया।

पूरी तरह से यौन उत्तेजक, संभोग दृश्यों वाली पहली पोर्नोग्राफी फिल्म का जन्म फ्रांस में नहीं हुआ था। उसकी पृष्ठभूमि अर्जेंटीना में छिपी है। हालांकि, फ्रांसीसी निर्माताओं के उकसावे पर ही अर्जेंटीना में पोर्नोग्राफी का चलन शुरू हुआ।

फ्रांस में पोर्न फिल्मों के innovators में पाथे ब्रदर्स का नाम लिया जाता है। उन्हीं के हाथों बीसवीं सदी की शुरुआत में ब्यूनस आयर्स की गलियों में ‘अश्लील’ फिल्मों की शूटिंग शुरू हुई थी। फ्रांस में conservative समाज और सरकार की नजरों से बचकर पोर्नोग्राफी का उत्पादन बढ़ाने के लिए अर्जेंटीना को चुना गया था।

सबसे पुरानी पोर्नोग्राफी फिल्म के तौर पर अर्जेंटीना की ‘एल सार्तोरियो’ या ‘एल सतारियो’ का नाम सामने आता है। इस फिल्म में स्त्री-पुरुष के संभोग दृश्य दिखाए गए थे। संभोग की विभिन्न मुद्राओं को कैमरे में कैद किया गया था। विशेषज्ञ दावा करते हैं कि इस फिल्म में ही पहली बार बहुत करीब से गुप्तांगों का प्रदर्शन किया गया था।

‘एल सार्तोरियो’ में सिर्फ यौनता ही नहीं थी, बल्कि यौनता की आड़ में कहानी का स्पर्श भी था। फिल्म की शूटिंग रोज़ारियो शहर के नदी किनारे हुई थी। कहानी के अनुसार, अल्पवस्त्र पहने महिलाओं का एक समूह नदी किनारे चल रहा था। उन्हें एक Satyr या अश्वमानव देखता है। यह ग्रीक पौराणिक कथाओं का एक पुरुष किरदार है, जिसके घोड़े जैसे कान और पूंछ होती है।

Satyr उन महिलाओं में से एक को अपने पास खींच लेता है और उसके साथ यौन संबंध बनाता है। फिल्म में संभोग के कई पोज़ दिखाए गए हैं। इसके बाद अन्य महिलाएं आकर Satyr को वहां से भगा देती हैं।

यह फिल्म वर्तमान में प्राचीन पोर्नोग्राफी के दस्तावेज़ के तौर पर संभोग और यौनता संबंधी शोध संस्थान Kinsey Institute में संरक्षित है। उनके जानकारी के अनुसार, यह फिल्म १९०७ से १९१२ के बीच बनाई गई थी।

बीसवीं सदी की शुरुआत में पश्चिम में जिसकी शुरुआत हुई, मनोरंजन की दुनिया में वही पोर्नोग्राफी धीरे-धीरे पूर्व में भी फैली। चीन, जापान, भारत में भी नीली फिल्मों का निर्माण धीरे-धीरे शुरू हुआ। उन फिल्मों का कारोबार खूब चला। स्मार्टफोन के युग में पोर्न फिल्में और भी आसानी से उपलब्ध हो गईं।

पोर्नोग्राफी के विकास के रास्ते में शुरू से ही सभ्य, सुरुचिपूर्ण समाज की frowning एक बाधा बनी रही। लेकिन समाज नहीं, व्यक्ति के निजी दायरे में पोर्नोग्राफी बहुत पहले ही अपनी जगह पक्की कर चुकी है। इसलिए प्रतिबंध लगाकर भी उसे रोका नहीं जा सका है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *