भारत-पाक युद्धविराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी, विदेश सचिव ने संसदीय समिति को स्पष्ट बताया
भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी। दोनों देशों के बीच संघर्ष लंबे समय से चला आ रहा है, लेकिन यह नियंत्रित था। वर्तमान युद्ध की स्थिति में भी पड़ोसी देश की ओर से किसी परमाणु हमले का कोई संकेत नहीं था। सूत्रों के अनुसार, आज सोमवार को विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने संसदीय समिति को यह स्पष्ट कर दिया।
इससे नरेंद्र मोदी सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे को खारिज कर दिया है, जो वह इतने दिनों से दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करने का दावा कर रहे थे।
पहलगाम हमले का बदला लेने के लिए 6 मई की आधी रात को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन’ के तहत पाकिस्तान में आतंकवादियों के ‘जन्मस्थान’ पर हमला किया। पाकिस्तान ने पलटवार करने की कोशिश की लेकिन असफल रहा। भारत की मजबूत रक्षा प्रणाली ने उनके ड्रोन हमले को नाकाम कर दिया। भारत के हमले से तबाह होने के बाद पाकिस्तान ने हमला रोकने का आग्रह किया था। फिर आतंकवाद गतिविधियों को रोकने की प्रतिबद्धता के बदले इस्लामाबाद के अनुरोध को दिल्ली ने स्वीकार कर लिया। 10 मई को युद्धविराम पर सहमति बनी।
उसी दिन ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर कहा था, “अमेरिका के साथ लंबी बातचीत के बाद भारत-पाकिस्तान युद्धविराम पर सहमत हुए हैं। परमाणु शक्ति वाले दो देशों पर दबाव डालकर हमने युद्धविराम करवाया है। मैंने चेतावनी दी थी कि अगर युद्ध नहीं रुका तो व्यापार भी नहीं होगा। इससे काम हो गया।” फिर उसी बात को दोहराते हुए पिछले शुक्रवार को उन्होंने कहा, “मेरी सरकार ने ही भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम करवाया है। जो हुआ है उससे हम बहुत खुश हैं। भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के पड़ोसी हैं। दोनों के बीच इतनी नाराजगी ठीक नहीं है। यदि आप दोनों देशों के बीच तनाव का स्तर देखेंगे तो आपको भी ऐसा ही लगेगा। यह अमेरिका की बड़ी जीत है।”
आज इसी मुद्दे पर संसदीय समिति के सदस्यों ने सवाल उठाए। विदेश सचिव से पूछा गया कि ट्रंप ने सात बार भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम करवाने का दावा क्यों किया? केंद्र इस मुद्दे पर चुप क्यों है? भारत ट्रंप को बार-बार ऐसा दावा करने का मौका क्यों दे रहा है? वह अपने भाषणों में कश्मीर को क्यों खींच रहे हैं? सूत्रों के अनुसार, इसके जवाब में विक्रम मिसरी ने स्पष्ट कर दिया, “भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम राजनयिक बातचीत के माध्यम से हुआ है। इसमें किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं था। युद्धविराम में अमेरिका की भी किसी भी तरह से कोई भूमिका नहीं थी।”
गौरतलब है कि अतीत में ट्रंप ने कई बार कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने की इच्छा व्यक्त की है। पहलगाम हमले के बाद ट्रंप को यह कहते हुए सुना गया था, “भारत और पाकिस्तान दोनों मेरे बहुत करीब हैं। मेरे दोस्त हैं। कश्मीर में उनकी लड़ाई 1000 साल से चल रही है। यह लड़ाई और लंबी चलेगी। इसके अलावा, उस सीमा पर 1500 साल से तनाव बना हुआ है।” जिससे कई विवाद भी हुए। लेकिन आज विदेश सचिव के बयान से यह भी स्पष्ट हो गया कि भारत अपनी समस्याओं का समाधान खुद कर सकता है। कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा, चाहे वह ‘मित्र’ अमेरिका ही क्यों न हो।