झूठ पकड़ने का विज्ञान: आँख देखकर झूठ पहचानें, विज्ञान की अनकही भाषा समझें
झूठ एक ऐसी चीज़ है जिसने निजी जीवन से लेकर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति तक अपनी छाप छोड़ी है। लेकिन अब सवाल यह है कि झूठ को कैसे पकड़ा जाए? आधुनिक विज्ञान इसी सवाल का जवाब लेकर आया है। अब आँखों के पलक झपकने, आवाज़ और यहाँ तक कि भाषा बदलने के तरीके से भी झूठ पकड़ना संभव हो रहा है।
झूठ का पता लगाने के पुराने तरीके
झूठ का पता लगाने के लिए कभी पॉलीग्राफ टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता था। इसमें दिल की धड़कन, रक्तचाप और पसीने के स्तर की निगरानी की जाती थी। लेकिन आज के युग में झूठे लोग पॉलीग्राफ को भी चकमा देना सीख गए हैं। इसलिए वैज्ञानिक और सटीक तरीकों की तलाश कर रहे हैं।
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आँखों के ज़रिए झूठ पकड़ना
हाल ही में एक शोध में पाया गया है कि झूठ बोलने पर व्यक्ति की आँखों की पुतलियाँ फैल जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि झूठ बोलने के लिए दिमाग को ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जिससे आँखों में यह बदलाव देखा जा सकता है। यह शोध वैलेंटिन फाउचर और एंके हुकहॉफ ने किया था।
मस्तिष्क की प्रतिक्रिया और आवाज़ में बदलाव
न्यूरोसाइंटिस्टों ने देखा है कि सच बोलने और झूठ बोलने पर दिमाग की प्रतिक्रिया एक जैसी नहीं होती। झूठ बोलने पर कुछ खास हिस्से ज़्यादा सक्रिय हो जाते हैं। इसके अलावा, आवाज़ में कंपन या असामान्य गति भी देखी जाती है, जो दरअसल झूठ का संकेत है।
भाषा बदलने से पकड़ा जाता है झूठ!
इज़राइल के नेगेव विश्वविद्यालय के शोध से पता चलता है कि मातृभाषा के अलावा किसी और भाषा में झूठ बोलना ज़्यादा मुश्किल होता है। इससे मानसिक तनाव बढ़ जाता है और व्यक्ति के हावभाव बदल जाते हैं, जिसे पहचानना आसान होता है।
डीपफेक: झूठ का नया चेहरा
आज के युग में सिर्फ़ बातों का झूठ ही नहीं, वीडियो का झूठ भी समस्या पैदा कर रहा है। डीपफेक तकनीक के ज़रिए ऐसे वीडियो बनाए जा रहे हैं जो असल में हुए नहीं हैं लेकिन पूरी तरह असली दिखते हैं। नतीजतन, आँखों से देखा गया दृश्य भी कभी-कभी झूठ हो सकता है।