किसी काम में बार-बार आ रही है बाधा? इन 5 गीता श्लोकों में छिपा है समाधान, एक क्लिक में जानें
लाइफस्टाइल न्यूज़: क्या आप जीवन में निराश महसूस कर रहे हैं? गीता के ये 5 श्लोक आपको नई ऊर्जा और दिशा देंगे। इन ज्ञानवर्धक वचनों से अपना आत्मविश्वास बढ़ाएँ और चुनौतियों का सामना करें। देखें पूरी फोटो गैलरी।
कई बार जीवन इतना बोझिल लगने लगता है कि खुद को संभालना मुश्किल हो जाता है। ऐसे समय में सब कुछ बहुत कठिन प्रतीत होता है।
क्या आप जानते हैं ऐसे में क्या करना चाहिए? यहाँ दिए गए हैं कुछ उपाय।
“यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥” (गीता २.५८)
अर्थ: जैसे कछुआ अपने अंगों को समेट लेता है, वैसे ही व्यक्ति को अपनी इंद्रियों को विषयों से हटा लेना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि जीवन में बुरा समय आने पर कभी भी स्थिति से भागना नहीं चाहिए, बल्कि शांत मन से उसका सामना करना चाहिए।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥” (गीता २.४७)
अर्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, फल पर कभी नहीं। तुम कर्मों के फल की इच्छा से काम मत करो और न ही कर्म न करने में तुम्हारी आसक्ति हो। इसका तात्पर्य यह है कि अपना काम करते रहें। किसी की परवाह न करते हुए अपना काम करना ही बुद्धिमानी का लक्षण है।
“बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः। अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्॥” (गीता ६.६)
अर्थ: जिसने अपने आप को जीत लिया है, वह स्वयं ही अपना मित्र है। लेकिन जिसने अपने आप को नहीं जीता है, उसके लिए वह स्वयं शत्रु के समान व्यवहार करता है।
“श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥” (गीता ३.३५)
अर्थ: अच्छी तरह से पालन किए गए परधर्म से, गुणों से रहित अपना धर्म श्रेष्ठ है। अपने धर्म में मरना भी कल्याणकारी है, क्योंकि परधर्म भय उत्पन्न करने वाला होता है।