ताश खेलना ‘बुरे चरित्र’ का संकेत नहीं, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
लंबे समय से चली आ रही यह धारणा कि ताश खेलना, शतरंज और पासा तीन विपत्तियां हैं, पर अब विराम लग गया है। सुप्रीम कोर्ट ने ताश के खेल को ‘क्लीन चिट’ देते हुए एक अहम टिप्पणी की है। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जुआ खेले बिना, केवल मनोरंजन और मन की खुशी के लिए ताश खेलता है, तो इसे किसी भी तरह से अनैतिक या बुरे चरित्र का उदाहरण नहीं माना जा सकता।
यह मामला हनुमानथारियप्पा वाई.सी. नामक एक व्यक्ति से संबंधित है, जिन्हें एक आवास सहकारी समिति के निदेशक मंडल में चुना गया था। हालांकि, सड़क के किनारे ताश खेलने के आरोप में उन पर ₹200 का जुर्माना लगाया गया और ‘नैतिक पतन’ का आरोप लगाते हुए कर्नाटक सहकारी सोसायटी अधिनियम के तहत उन्हें दोषी ठहराया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें पद से हटा दिया गया। हनुमानथारियप्पा ने इस निर्णय के खिलाफ पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, लेकिन वहां से राहत न मिलने पर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ताश के खेल कई प्रकार के होते हैं, और इसलिए यह मानना कठिन है कि ताश खेलना अपने आप में अनैतिक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ लोग ताश को केवल मनोरंजन के रूप रूप में देखते हैं। विशेषकर भारत में, अधिकांश मामलों में ताश के खेल जुए से जुड़े नहीं होते, बल्कि वे गरीबों के लिए मनोरंजन का एक साधन मात्र होते हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर की पीठ ने टिप्पणी की कि चूंकि हनुमानथारियप्पा स्वभाव से जुआरी नहीं हैं, इसलिए उनके खिलाफ उठाए गए कदमों का कोई आधार नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि हनुमानथारियप्पा सबसे अधिक मत प्राप्त करके निर्वाचित हुए थे, इसलिए यह स्वीकार करना कठिन है कि उनके जैसे व्यक्तित्व वाला कोई व्यक्ति जुआ खेलेगा।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि हनुमानथारियप्पा ने 12 फरवरी, 2020 को चुनाव जीता था और उनके प्रतिद्वंद्वी रंगनाथ बी. ने चुनाव हारने के बाद उन्हें ताश खेलने के लिए दंडित किए जाने का मुद्दा उठाकर उन्हें पद से हटाने की कोशिश की थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद हनुमानथारियप्पा को अंततः राहत मिली और उन्हें अपना पद वापस मिल गया।