एफ-22 रैप्टर: अमेरिका का वो गुप्त हथियार जो किसी को क्यों नहीं मिलता?

वाशिंगटन डीसी: अमेरिकी वायु सेना का पांचवीं पीढ़ी का स्टील्थ लड़ाकू विमान एफ-22 रैप्टर दुनिया के सबसे उन्नत लड़ाकू विमानों में से एक माना जाता है। लॉकहीड मार्टिन द्वारा निर्मित इस विमान में अत्याधुनिक स्टील्थ प्रौद्योगिकी, सुपरक्रूज़ क्षमताएं और उन्नत सेंसर फ्यूजन हैं, जो इसे युद्ध के मैदान में अजेय बनाते हैं। लेकिन इतना शक्तिशाली होने के बावजूद अमेरिका यह विमान किसी भी देश को क्यों नहीं बेचता, यह एक बड़ा सवाल है।

इसके पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा का डर, सख्त कानूनी प्रतिबंध और रणनीतिक श्रेष्ठता बनाए रखने की रणनीतियां हैं। अमेरिकी सरकार को यह डर है कि अगर यह तकनीक अन्य देशों के हाथों में पड़ गई तो इसका इस्तेमाल उनके या उनके प्रतिस्पर्धियों द्वारा उनके खिलाफ किया जा सकता है। यही कारण है कि अमेरिकी कांग्रेस ने एफ-22 के निर्यात पर कड़ा प्रतिबंध लगा रखा है, यहां तक कि जापान और इजरायल जैसे अपने करीबी सहयोगियों को भी इसे बेचने की अनुमति नहीं है।

इसके अतिरिक्त, एफ-22 का उत्पादन 2009 में रोक दिया गया था क्योंकि प्रत्येक विमान के निर्माण की लागत 150 मिलियन डॉलर से अधिक थी, जो इसे बेहद महंगा बनाती थी। इसके बजाय, अमेरिका अब एफ-35 लाइटनिंग II जैसे अधिक लागत प्रभावी विमानों में निवेश कर रहा है, जिसे मित्र देशों को बेचा जा रहा है। यद्यपि एफ-35 में आधुनिक तकनीक है, फिर भी इसमें एफ-22 के समान गोपनीयता (स्टील्थ) नहीं है। एफ-22 अमेरिका की सैन्य श्रेष्ठता का प्रतीक है और यदि यह किसी अन्य देश के हाथों में चला गया तो उसका सामरिक लाभ कम हो सकता है। परिणामस्वरूप, अमेरिका इस विमान को अपने पास ही रखना चाहता है और विश्व मंच पर अपनी सैन्य शक्ति तथा प्रभुत्व को बनाए रखना चाहता है।

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