टाटा नहीं होता तो ‘वंदे भारत’ का सपना अधूरा रह जाता!

टाटा नहीं होता तो ‘वंदे भारत’ का सपना अधूरा रह जाता!

टाटा… यह नाम सिर्फ भारत के सबसे बड़े व्यापारिक समूह का प्रतीक नहीं, बल्कि देश के प्रति अटूट समर्पण का भी परिचायक है। भारत के पहले 5-स्टार होटल से लेकर पहले हाइड्रोपावर प्लांट, पहले स्टील प्लांट और यहां तक कि पहली 5-स्टार सेफ्टी रेटिंग वाली कार तक, टाटा समूह ने हमेशा मुनाफे से पहले राष्ट्र हित को प्राथमिकता दी है। ‘नेशन फर्स्ट’ की इस विरासत में अब ‘वंदे भारत’ ट्रेन के सपने को पूरा करना भी शामिल हो गया है, जो आधुनिक भारतीय इंजीनियरिंग का प्रतीक और राष्ट्रीय गौरव का स्रोत है।

आज हम जिस ‘वंदे भारत’ ट्रेन पर गर्व करते हैं – उसकी जबरदस्त गति, कम लागत पर विश्व स्तरीय तकनीक और यूरोप जैसी शानदार ट्रेन प्रदान करने का सपना – कभी पूरा नहीं होता, अगर टाटा समूह की कंपनियों ने इसके लिए आवश्यक सामान तैयार नहीं किया होता। वंदे भारत ट्रेन एक पूरा ट्रेन सेट है, जिसमें इंजन और डिब्बे अलग नहीं होते, बल्कि डिब्बों में ही प्रोपेलिंग सिस्टम लगा होता है, जिससे ट्रेन की गति बढ़ाने में मदद मिलती है। ट्रेन के डिब्बे ही आपस में आगे-पीछे वाले डिब्बे को पुश और पुल करते हैं, जिससे गति और बढ़ती है। हालाँकि, ट्रेन की गति बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण कारक कोच बनाने में इस्तेमाल होने वाला हल्का लेकिन मजबूत मैटेरियल है, और यहीं पर टाटा समूह की भूमिका सामने आती है। टाटा स्टील ने इस ट्रेन को बनाने में इस्तेमाल होने वाले हल्के ‘FRP’ (फाइबर री-इंफोर्सड पॉलिमर) पैनल तैयार किए, जो हल्के बॉडी बनाने में उपयोग होते हैं। इसके अलावा, टाटा स्टील ने हनीकॉन्ब सॉल्यूशन भी तैयार किया, जिसका उपयोग ट्रेन के इंटीरियर को बनाने में हुआ। टाटा समूह की एक और कंपनी, टाटा ऑटोकोम्प सिस्टम्स, ने इस ट्रेन की सीटिंग से लेकर बर्थ डिजाइनिंग और इंटीरियर्स के लिए इंजीनियर्ड पैसेंजर-सेंट्रिक सॉल्यूशन तैयार किए। इस प्रकार, टाटा समूह ने ‘वंदे भारत’ के सपने को साकार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह उनकी देश के प्रति प्रतिबद्धता का एक और उदाहरण है, जैसा कि उन्होंने पहले हावड़ा ब्रिज और नई संसद भवन के निर्माण में भी दिखाया है।

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