प्रेमानंद महाराज का स्पष्टीकरण: मृत व्यक्ति की मूर्ति पूजा का सच

वृंदावन के सुप्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज के समक्ष एक भक्त ने मृत व्यक्ति की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने की परंपरा पर प्रश्न किया। भक्त ने पूछा कि क्या घर में मृत परिजनों की मूर्ति रखना और उनकी पूजा करना उचित है, खासकर जब परिवार में कोई विपदा आती है तो उसे पितरों का रुष्ट होना माना जाता है। इस पर महाराज श्री ने स्पष्ट किया कि ये सभी बातें निर्मूल हैं। उन्होंने बताया कि मृत्यु के तुरंत बाद आत्मा या तो स्वर्ग-नरक की यात्रा पर निकल जाती है या अपने कर्मों के अनुसार अन्य योनियों में भेज दी जाती है। आत्मा मरने के बाद स्वतंत्र नहीं रहती कि उसे जब चाहें तब बुलाया जा सके।
प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा कि जीवन में घटने वाली प्रत्येक घटना हमारे अपने कर्मों का फल होती है, न कि पितरों की नाराजगी का। उन्होंने पितरों के लिए पिंडदान आदि कर्मकांडों को पितृ ऋण से मुक्ति पाने का साधन बताया, न कि किसी विपदा का कारण। महाराज श्री के इस कथन से भक्तों को मृत व्यक्ति की मूर्ति पूजा और उससे जुड़ी भ्रांतियों के संबंध में गहन जानकारी मिली।