कैंसर का ‘जवाब’ इंसान के मल में छिपा है! अमेरिकी वैज्ञानिकों के ‘युगांतकारी’ शोध से मचा तहलका
चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के साथ, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में नए क्षितिज खुल रहे हैं। इसी राह पर दुनिया के सबसे प्रसिद्ध चिकित्सा अनुसंधान संस्थानों में से एक, मेयो क्लिनिक ने एक अभूतपूर्व कदम उठाया है। सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन मेयो क्लिनिक के शोधकर्ता मानव मल या विष्ठा से कैंसर का इलाज खोजने के लिए एक युगांतकारी शोध कर रहे हैं।
आंत माइक्रोबायोम और कैंसर का संबंध
इस शोध का मुख्य केंद्र मानव आंत में रहने वाले अरबों सूक्ष्मजीव हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘गट माइक्रोबायोम’ के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह माइक्रोबायोम हमारी पाचन प्रक्रिया, रोग प्रतिरोधक क्षमता और समग्र स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। हाल ही में, कैंसर के विकास और उपचार की प्रभावकारिता के साथ गट माइक्रोबायोम का गहरा संबंध पाया गया है। मेयो क्लिनिक के शोधकर्ता मुख्य रूप से यह पता लगा रहे हैं कि आंत के लाभकारी बैक्टीरिया का उपयोग करके कैंसर के खिलाफ शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को और कैसे मजबूत किया जा सकता है।
फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन (FMT)
इसका एक महत्वपूर्ण पहलू ‘फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन’ (FMT) या मल प्रतिस्थापन थेरेपी है। इस पद्धति में एक स्वस्थ व्यक्ति के मल से लाभकारी बैक्टीरिया निकालकर कैंसर से पीड़ित रोगी की आंत में प्रत्यारोपित किए जाते हैं। प्रारंभिक शोध से पता चला है कि कुछ खास प्रकार के कैंसर के इलाज में, खासकर कीमोथेरेपी या इम्यूनोथेरेपी की प्रभावकारिता बढ़ाने में यह विधि सहायक हो सकती है।
मेयो क्लिनिक में चल रहे क्लीनिकल ट्रायल
मेयो क्लिनिक के ‘सेंटर फॉर इंडिविजुअलाइज्ड मेडिसिन’ के शोधकर्ता इस विषय पर कई क्लीनिकल ट्रायल चला रहे हैं। उनका लक्ष्य विशिष्ट प्रकार के कैंसर से पीड़ित रोगियों के मल के नमूनों का विश्लेषण करके उनके गट माइक्रोबायोम की संरचना को समझना और उसी के अनुसार उपचार की रूपरेखा तैयार करना है। उदाहरण के तौर पर, जिन रोगियों की आंत में विशिष्ट प्रकार के लाभकारी बैक्टीरिया की कमी है, उनके मामले में FMT या विशिष्ट प्रोबायोटिक सप्लीमेंट्स के माध्यम से उस कमी को पूरा करके उपचार की प्रभावकारिता बढ़ाना संभव है।
नए बायोमार्कर की खोज
इसके अलावा, शोधकर्ता मल के नमूनों से ऐसे ‘बायोमार्कर’ या जैविक संकेतक (markers) की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं, जो कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में निदान करने या यह बताने में मदद करेंगे कि रोगी का शरीर उपचार के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देगा।
गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट और कैंसर विशेषज्ञ इस शोध के भविष्य को लेकर बहुत आशावादी हैं। उनके अनुसार, गट माइक्रोबायोम का उपयोग करके कैंसर का इलाज एक नया अध्याय खोल सकता है, जो पारंपरिक उपचार पद्धतियों की सीमाओं को पार करने में सहायक होगा। इससे कैंसर का उपचार और भी ‘पर्सनलाइज्ड’ या व्यक्ति-केंद्रित और प्रभावी हो जाएगा, ऐसी उम्मीद है।