जीवन में आप चाहे कितना भी पैसा कमा लें, वह कम ही पड़ेगा, जब तक आपके पास ये पांच रत्न न हों

जीवन में आप चाहे कितना भी पैसा कमा लें, वह कम ही पड़ेगा, जब तक आपके पास ये पांच रत्न न हों

एक बार एक शिष्य भगवान बुद्ध के पास आकर बोला, ‘भगवान, मैं धनी क्यों नहीं हूं?’ भगवान बोले, ‘क्योंकि तुम उदार नहीं हो!’

शिष्य बोला, ‘भगवान, उदार वही व्यक्ति होता है, जो धनी होता है. मैं गरीब किस बात की उदारता दिखाऊं?’

भगवान बोले, ‘गरीब? तुम तो धनी हो. सिर्फ तुम ही नहीं, दुनिया का हर व्यक्ति धनी है, क्योंकि हर किसी के पास पांच रत्न हैं.’

शिष्य हैरान होकर बोला, ‘रत्न और मेरे पास? कौन से रत्न भगवान? कृपया विस्तार से बताइए.’

भगवान मुस्कुराते हुए कहने लगे…

‘पहला रत्न, मुस्कान है. लोगों को इतनी समस्याएं और प्रश्न हैं कि वे हंसना भूल गए हैं. तुम्हारे पास मुस्कान है. उसे तुम देकर देखो. तुम्हें देखकर दूसरे के चेहरे पर मुस्कान आए बिना नहीं रहेगी. एक हल्की मुस्कान सामने वाले व्यक्ति को कुछ देर के लिए ही सही, दुख भुला देती है.

‘दूसरा रत्न, आंखें हैं. इन आंखों से हम दुनिया की तरफ देखते हैं. लेकिन अगर हमारी दृष्टि स्नेहपूर्ण हो, तो केवल दृष्टि से ही सामने वाला व्यक्ति सांत्वना पा सकता है. आश्वस्त करने वाली दृष्टि बहुत महत्वपूर्ण है. वह दृष्टि किसी को सकारात्मकता देती है, तो किसी के जीवन में शक्ति भर देती है. आंखों में प्रेम, दया, वात्सल्य, सहानुभूति—ऐसे कई भाव छिपे होते हैं. ऐसी प्रेममय दृष्टि के लिए कई लोग तरस रहे हैं.

‘तीसरा रत्न, जीभ है. इसका उपयोग केवल विभिन्न खाद्य पदार्थों का स्वाद लेने के लिए नहीं, बल्कि अच्छी बातें कहने के लिए भी करना चाहिए. अगर हम अपनी बातों से दूसरों को प्रोत्साहित कर सकें, विश्वास दे सकें, प्रशंसा कर सकें, तो इसका सकारात्मक परिणाम दूसरे के जीवन पर अवश्य हो सकता है. इसलिए अच्छी बातें बोलो. झूठी प्रशंसा या झूठी स्तुति नहीं, बल्कि जीने की शक्ति देने वाली दो बातें ही काफी हैं.

‘चौथा रत्न, हृदय है. तुम्हारे हृदय में दूसरों के प्रति केवल ईर्ष्या, क्रोध, घृणा और अहंकार भरा है. ये चीजें हृदय के लिए उपयोगी नहीं हैं, बल्कि वे हानिकारक हैं. उन्हें हटाकर हृदय के स्थान को प्रेम से भर दो. जिसका हृदय प्रेम और आनंद से भरा होगा, वही दूसरों को प्रेम और आनंद दे पाएगा.’

‘पांचवां रत्न, शरीर है. हमें मिले स्वस्थ शरीर का उपयोग केवल अपने लिए न करके दूसरों के लिए भी करो. जब तुम जनोपयोगी बनोगे, तब उस चेतना में तुम और अधिक समृद्ध होगे. यही चेतना ही असली धन है! अब मुझे बताओ, ये पांच रत्न तुम्हारे पास होते हुए भी तुम गरीब हो या धनी?’

शिष्य ने उत्तर दिया, ‘भगवान, आपने मुझे मेरे धन का एहसास कराया. मैं इन रत्नों का सदुपयोग करूंगा और दूसरों को भी इसका एहसास कराऊंगा. अगर सभी को इन रत्नों की पहचान हो जाए और हर कोई इनका सही उपयोग करने का निर्णय ले, तो यह दुनिया कितनी धनी होगी, है ना?’

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