साँपों का गाँव! देश में ऐसा और कहीं नहीं…इंसानों के बगल में रेंगते ‘पड़ोसी’ साँप! कहाँ, जानते हैं?

एक छोटा-सा हरा-भरा गाँव, जहाँ साँप रेंगते हैं! इंसान और साँप यहाँ पड़ोसी हैं! इसका क्षेत्रफल सिर्फ 3 वर्ग किलोमीटर है और यह समुद्र तल से लगभग 2700 फीट की ऊँचाई पर है। इस बस्ती में सिर्फ 600 लोग रहते हैं, बाकी सब साँप हैं! कहाँ, जानते हैं?
साँप—एक ओर डर, दूसरी ओर भक्ति। भारतीय संस्कृति में साँपों की उपस्थिति एक अजीबोगरीब द्वैतता के साथ शाश्वत है। कभी ये शिव के गले में रहते हैं, तो कभी ग्रामीण बंगाल के खेतों में किसानों पर झपटते हैं। लोककथाओं से लेकर पुराणों तक, मंदिरों से लेकर मिट्टी के घरों तक—हर जगह साँपों की छाया है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा गाँव है, जहाँ साँप सिर्फ पौराणिक पात्र नहीं हैं—वे वास्तव में राजा हैं? एक ऐसी जगह जहाँ साँप सिर्फ पड़ोसी नहीं, बल्कि यहाँ की संस्कृति, जैव विविधता और अनुसंधान का केंद्र बिंदु हैं। एक गाँव, जिसके साथ ‘कोबरा’ शब्द जुड़ा है, ठीक वैसे ही जैसे गंगा के साथ हिमालय।
प्राचीन धर्मग्रंथों से लेकर आधुनिक अनुष्ठानों तक—हर जगह यह विषैला साँप देवताओं का प्रतीक है। शिव के गले में रहने वाला नाग, विष्णु का शयनकक्ष भी अनंतनाग पर बना है। हर साल नागपंचमी उत्सव पर पूरे देश में नागदेवता की पूजा होती है।
लेकिन सिर्फ पुराणों में ही नहीं, भारत के कुछ क्षेत्र वास्तव में साँपों के प्रभुत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक स्थान एक छोटा-सा गाँव है। इस गाँव को “भारत की कोबरा राजधानी” कहा जाता है!
एक छोटा-सा हरा-भरा गाँव। इसका क्षेत्रफल सिर्फ 3 वर्ग किलोमीटर है और यह समुद्र तल से लगभग 2700 फीट की ऊँचाई पर है। इस बस्ती में सिर्फ 600 लोग रहते हैं। यह जगह घने जंगल, पहाड़ों और झरनों से घिरी हुई है, जो इसे प्रकृति प्रेमियों और वन्यजीव शोधकर्ताओं के लिए स्वर्ग बनाती है।
केवल साँपों के लिए ही नहीं, यहाँ के घने जंगलों में कई दुर्लभ प्रजातियों के जानवर और पौधे भी पाए जाते हैं। यहीं पर कुछ दुर्लभ कवक प्रजातियों की पहली बार खोज की गई है, जैसे—Meliola agumbensis, Tarenna agumbensis, Hygromaster agumbensis, Dactylaria agumbensis—इन सभी के साथ ‘अगम्बे’ नाम जोड़ा गया है।
कहाँ है यह साँपों का गाँव? यह भारत के पश्चिमी घाट पर्वतमाला में स्थित कर्नाटक का अगम्बे है। यहाँ इतनी बारिश होती है कि इसे “दक्षिण का चेरापूंजी” कहा जाता है।
हालांकि यह भारत की कोबरा राजधानी है, लेकिन अगम्बे का सबसे प्रसिद्ध निवासी निस्संदेह किंग कोबरा है। यहीं पर प्रसिद्ध सरीसृप शोधकर्ता पद्मश्री रोमुल्स व्हिटेकर ने अगम्बे रेनफॉरेस्ट रिसर्च स्टेशन (ARRS) की स्थापना की—जिसने भारत का पहला किंग कोबरा रेडियो टेलीमेट्री प्रोजेक्ट शुरू किया।
जो लोग नहीं जानते, हर्पेटोलॉजिस्ट एक ऐसे वैज्ञानिक होते हैं जो साँप, मेंढक, छिपकली, कछुए आदि सरीसृप और उभयचर प्राणियों पर शोध करते हैं। वे खेतों, जंगलों या प्रयोगशालाओं में इन जानवरों के व्यवहार, शरीर विज्ञान, आनुवंशिकी और विकास पर काम करते हैं। यह शोध अक्सर लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
किंग कोबरा दुनिया का सबसे लंबा विषैला साँप है। लेकिन यह बाकी साँपों से अलग है, क्योंकि अन्य साँपों की तरह चूहे या मेंढक नहीं—यह मुख्य रूप से अन्य साँपों को खाता है। यहाँ तक कि यह विषैले साँपों जैसे करैत को भी भोजन के रूप में चुनता है।
साँपों का साँप—जंगल की खाद्य श्रृंखला में बिल्कुल शीर्ष पर। यह अगम्बे ही भारत का वह रहस्यमय प्राकृतिक खजाना है—जहाँ साँप सिर्फ डर नहीं, बल्कि शोध, सम्मान और जैव विविधता की कुंजी हैं। पूरे देश में ऐसा दूसरा कोई गाँव नहीं है—जहाँ साँप इतने करीब और महत्वपूर्ण सहवासी हों!